निर्भयता - एक महान सद्गुण | Motivation
निर्भयता मानवीय गुणों मे से एक महान सद्गुण है | सामान्यतया व्यक्ति भांति भांति के भय व चिंताओं से घिरा रहता है, जैसे स्वास्थ्य हानि की चिंता व भय धन समाप्ति का भय परिजनों के वियोग का भय आदि चिंता व भय से मन में नकारात्मक तत्वों का प्रवेश हो जाता है और इसके कारण फिर हम नकारात्मक सोचने लगते हैं और वस्तुओं और परिस्थितियों के प्रति नकारात्मक दद्रष्टि रखते हैं तथा सकारात्मक द्रष्टि से दूर भी हो जाते हैं |
जीवन में आगे बढ़ने के लिए सकारात्मक दष्टिकोण का होना बहुत जरूरी है ,क्योंकि यही दष्टिकोण हमें आगे बढ़ने में मदद करता है, जबकि नकारात्मक दष्टिकोण हमारे आगे बढ़ने के सभी रास्तों को एक प्रकार से बंद कर देता है | यही कारण है कि जब व्यक्ति भय चिंता व अवसाद से ग्रस्त होता है तो वह इसी दलदल मे धसता चला जाता है |
निर्भयता - एक महान सद्गुण
उसे इन मनोविकारो से बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं मिलता, नकारात्मत्क द्रष्टिकोर्ण की यह दलदल इतनी भयानक होती है कि फिर व्यक्ति आत्महत्या करने को ही एकमात्र समाधान समझता है |
भयभीत चिंता व अवसाद से ग्रस्त रहना एक आप्रकर्तिक बात है, प्रकर्ति भी नहीं चाहती की मनुष्य इन मनोविकारो का बोझ आत्मा पर डाले |
जीवन मे अनेकों ऐसी परिस्थितियां आती है जो व्यक्ति को दुविधा व परेशानी में डाल देती है, कई परिस्थितियों व्यक्ति को शोकग्रस्त कर देती है किंतु इन परिस्थितियों से भयभीत वह चिंतित होना अथवा तनाव में आना समस्या का समाधान नहीं होता |
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भयभीत व चिंतित होकर कभी भी इन परिस्थितियों का सामना नहीं किया जा सकता परिस्थितियों का भली प्रकार सामना वे ही कर पाते हैं जो निर्भय एवं निश्चित होते हैं |
आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं उन सभी में निर्भयता का गुण अवश्य रहा है, जो व्यक्ति जितना निर्भर होता है वह उसी मात्रा में महान पथ पर अग्रसर हो पाता है क्योंकि निर्भयता जीवन आत्मा का प्रमाण है |
वास्तव में जिसने अपने आत्म तत्व को जान लिया उसने शाश्वत व अविनाशी तत्व को महसूस कर लिया है वह पूर्णतया निर्भय हो जाता है लेकिन जो अपने आत्मतत्व से कोसों दूर चला गया है जिसे अपनी आत्मा के अस्तित्व का एहसास ही नहीं है वह उसके तेज को महसूस नहीं कर पाता ऐसा मनुष्य ब्राहा परिस्थितियों व आंतरिक दुर्लभ स्थिति के कारण भयभीत ही बना रहता है |
निष्कर्ष
शंका मन में प्रवेश करते ही वातावरण संदेह पूर्ण बन जाता है और फिर मनुष्य को चारों ओर वही नजर आने लगता है जिससे वह डरता है यदि अपने मन से भय की भावनाओं को पूर्णतया निष्कासित कर दे तो वह निर्भय होकर सुखी रह सकता है सदैव आनंदित रहने के लिए भी है अति आवश्यक है कि हमारा अतः करण भय कि कल्पना से सर्वथा मुक्त रहें |
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